Bhagavad gita quotes in hindi|गीता के अनमोल वचन इन हिंदी
दोस्तो, Bhagavad gita quotes in hindi के बारेमे जानने से पहले थोड़ा(short में) भागवत गीता के बारेमे जानलेते है।
भागवत गीता और भागवत गीता के ज्ञान पर असंख्य लोको ने काम किया है।
क्या विशेष है गीता में? भागवत गीता में अगर कुछ विशेष है तो वो है श्री कृष्ण बाकी हम सब निम्मित है।
वैसे तो गीता के बारेमे बहुत कुछ कहा गया है सुना गया है, साइद ही ऐसा कोई धर्म ग्रंथ होगा जिस पर इतना लिखा गया हो।
दोस्तो, गीता के हर श्लोक में वेद और उपनिषद का सार है, भागवत गीता के श्लोक में आप अपने आपको अर्जुन समझिए क्योंकि वैसे देखा जाए तो अर्जुन की हर शंका, हर डर, हर समस्या हमारी ही समस्या है।
भागवत गीता क्या है?
भागवत गीता एक उत्तर है, गीता दुनिया के हर प्रश्न का जीवन से जुड़ा कोई ऐसा प्रश्न नहीं है जिसका उत्तर भगवान श्री कृष्ण ने गीता में नही दिया हो।
दोस्तो, श्री कृष्ण को केवल अर्जुन का सारथी मत मानिए उसको हमारे जीवन का सारथी भी मानिए गा।
उनके कहे अनुसार हम और आप चलेंगे तो में दावे के साथ कहता हु की आपको सारा जीवन आसान हो जायेगा।
दोस्तो, हम यहां गीता के अनमोल वचन,Bhagavad gita quotes in hindi और Bhagavad gita quotes in sanskrit with hindi translation के साथ दिखेंगे।
Bhagavad gita quotes in Hindi
Bhagavad Gita Quotes in Sanskrit with Hindi translation
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कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।
श्लोक का अर्थ:
"है अर्जुन तुझे इस युद्ध के समय यह मोह किस तरह आया, ना तो यह श्रेष्ठ पुरुषो द्वारा आचरित है नाही स्वर्ग को देने वाला है, युद्ध के समय ऐसी शंका! ये तो अ समय है।"
श्लोक का जीवन में प्रभाव:
दोस्तो, यहां भगवान श्री कृष्ण हमे कहना चाहते है की कर्म से मुंह मोड़कर मोह या किसी अन्य वजह से हताश हो के बैठ जाए तो वो ठीक नही है।
ऐसे बैठ ने से कभी कोई लाभ नहीं होता।
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।
श्लोक का अर्थ:
"है अर्जुन शक्ति हीनता(कमजोर होना) को मत प्राप्त हो अगर तू युद्ध में आया है तो युद्ध कर ऐसी मन की शंका तेरे जैसे धनुर्धर के लिए योग्य नहीं है की इस तरह मन की मन की कमजोरी दिखाना।"
श्लोक का जीवन में प्रभाव:
दोस्तो, धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए स्वयं को कमजोर मानकर बात(कर्म) को छोड़ देना यह उचित नहीं है।
बुरे समय में जब हमको आशंका सताए तब मन की दुर्बलता को छोड़ कर हमे उस कर्म के बारेमे सोचना चाहिए जो हम करने आए है।
न कर्मणामनारंभान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च सन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥
श्लोक का अर्थ
मनुष्य न तो कर्म को सरू किए बिना निष्कर्मता(योग निष्ठा) को प्राप्त होता है नही कर्म को केवल छोड़ देने से सिद्धि को प्राप्त होता है।
श्लोक का जीवन में प्रभाव
भगवान श्री कृष्ण यहां कहते है की आप कर्म करे ही न और स्वयं को संन्यासी कहे, अपने कर्तव्य को छोड़ यदि आप संन्यासी बन जाते है और आप समझते है आपको सफलता मिल जाएगी ! यह संभव नहीं है।
ऐसा नहीं हो सकता की कर्तव्य का त्याग करे और खुद को कर्मयोगी कहे।
कर्म(कर्तव्य) को न करने से या हमेशा के लिए छोड़ (त्याग) देने से कुछ भी हासिल नहीं होगा।
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